UP Lok Sabha Elections: भाजपा ने दूसरे दलों में सेंधमारी की कोशिश नहीं की, नए नेताओं ने कोई सक्रियता नहीं दिखाई।

by editor
UP Lok Sabha Elections: भाजपा ने दूसरे दलों में सेंधमारी की कोशिश नहीं की, नए नेताओं ने कोई सक्रियता नहीं दिखाई।

UP Lok Sabha Elections: में दूसरे दलों को हराने की कोशिश असफल रही। पार्टी ने लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में 70 हजार से अधिक नए सदस्यों को शामिल किया था। नवीनतम नेताओं से कोई प्रदर्शन नहीं हुआ।

UP Lok Sabha Elections:लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने उत्तर प्रदेश में लगभग 70 हजार से अधिक लोगों को अपनी पार्टी में शामिल करने का दावा किया। गली-मोहल्ले के नेताओं से लेकर सांसदों, पूर्व मंत्रियों सहित कई महत्वपूर्ण लोगों ने भाग लिया। योजना थी कि इससे पार्टी का वोट शेयर बढ़ेगा और प्रत्याशियों को जीत मिलेगी। पार्टी को दूसरे दलों में व्यापक रूप से देखा गया यह विध्वंस भी चुनावों में कोई लाभ नहीं दे सका। नए लोग चुनाव में सक्रिय नहीं रहे, और पुराने लोग इसकी प्रतिक्रिया में निष्क्रिय रहे। पार्टी ने इससे कई सीटें खो दीं। वहाँ कुछ नेताओं को शामिल किया गया था, लेकिन पार्टी ने उनका चुनाव में कोई उपयोग नहीं किया।

भाजपा ने बस्ती लोकसभा सीट को कमजोर पाया। सपा सरकार के पूर्व मंत्री राजकिशोर सिंह को इसे मजबूत करने के लिए लाया गया था। भाजपा को उनके आने से कोई लाभ नहीं हुआ। पार्टी एक लाख से अधिक वोटों से पराजित हुई। पूर्व मंत्री नारद राय ने बलिया और आसपास की सीटों पर साइकिलों पर ताला लगाने का दावा किया था, लेकिन भाजपा ने बलिया की जीती सीट भी खो दी। 2019 में, स्मृति ईरानी ने अमेठी में राहुल गांधी को हराया, जो देश को हैरान कर दिया था। इस बार सपा के बागी विधायक राकेश प्रताप और महाराजी देवी भी साथ थे, लेकिन भाजपा को अमेठी में करारी हार मिली।

बहुत से लोगों को नौकरी नहीं मिली, कुछ ने काम नहीं किया

कांग्रेस विधायक अभय सिंह के आगमन से फैजाबाद सीट पर कोई लाभ नहीं हुआ, और मनोज पांडे ने रायबरेली में कोई प्रदर्शन नहीं किया। राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया की हार को सपा के पूर्व सांसद देवेंद्र सिंह यादव की भाजपा में एंट्री भी नहीं रोक सकी। इटावा में, समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद प्रेमदास कठेरिया ने भी रामशंकर कठेरिया की नैया पार नहीं लगाई। मुरादाबाद सीट पर भाजपा को भी बसपा के पूर्व सांसद वीर सिंह की आमद से कोई फायदा नहीं हुआ।

भाजपा ने ऐसे कई और उदाहरणों का उपयोग करके विरोधी पार्टियों पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालने की कोशिश की। लेकिन समस्या यह थी कि इनमें से अधिकांश की पार्टी में शामिल होने का व्यापक विरोध हुआ था। भाजपा को जिताने के लिए उनमें से अधिकांश ने कुछ नहीं किया। भाजपा नेता और कार्यकर्ताओं ने इनके आने पर घरों में बैठ गए। पार्टी को प्रभावित करने वाले कई राजनैतिक और सामाजिक चेहरे थे, लेकिन उनकी सुध लेना तक जरूरी नहीं समझा गया।

400 पार के नारे ने भी भ्रम पैदा किया

अबकी बार भाजपा ने चार सौ पार का नारा दिया था। पार्टी के लिए, हालांकि, यह नारा कुछ मायनों में घातक था। एक तो विपक्ष ने भाजपा को संविधान बदलने से जोड़ दिया। इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों को भी चुनाव में इसका लाभ मिला। भाजपा के प्रचंड बहुमत से बनने वाली सरकार को देखकर बहुत से भाजपा कार्यकर्ता और समर्थक निराश रहे। कई सीटों पर कार्यकर्ता यह मानकर प्रत्याशी विरोध की मुहिम में जुटे रहे कि एक सीट हारने से भी भाजपा को कोई नुकसान नहीं होगा।

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