Mohini Ekadashi vrat katha : माना जाता है कि मोहिनी एकादशी का व्रत रखने से मोक्ष मिलता है और मोह माया से छुटकारा मिलता है। माना जाता है कि इस एकादशी को व्रत रखना
मोहिनी एकादशी वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। माना जाता है कि मोहिनी एकादशी का व्रत रखने से मोक्ष मिलता है और मोह माया से छुटकारा मिलता है। इस एकादशी का व्रत करने वालों के कई जन्मों के पाप भी नष्ट होते हैं, ऐसा माना जाता है। 19 मई को इस वर्ष मोहिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस व्रत में भगवान विष्णु को विशेष रूप से पूजा जाता है।
क्यों नाम पड़ा मोहिनी एकादशी
जब समुद्र मंथन हुआ, अमृत पाने के लिए देवताओं और असुरों में भी उत्सुकता थी। असुर देवताओं से अधिक शक्तिशाली थे। देवता चाहते हुए भी असुरों को पराजित नहीं कर पाए। भगवान विष्णु ने सभी देवताओं के आग्रह पर मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को अपने मोहमाया के जाल में फंसाकर सभी अमृत देवताओं को पिलाया। इससे सभी देवता जीवित हो गए। इसलिए इसे मोहिनी एकादशी कहा जाता है।
मोहिनी एकादशी व्रत कथा
इसकी कथा कुछ इस प्रकार से है- भद्रावती नगर सरस्वती नदी के किनारे बसा था, जिस पर चंद्रवंशी राजा द्युतिमान राज्य करता था। उसे राज्य में कई विष्णु भक्त रहते थे लेकिन उनमें धनपाल नाम का एक वैश्य भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह परोपकार के कईकार्य करता था और लोगों की मदद करता था। उसने नगर में लोगों की सेवा के लिए पानी का प्रबंध किया था, राहगीरों के लिए कई पेड़ लगाए थे। उसके पांच बेटे थे, जिनका नाम सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि था, इनमें से धृष्टबुद्धि पापी, अनाचारी, अधर्मी था। वह पाप कर्मों में लगा रहता था। धनपाल उससे बहुत परेशान था और एक दिन तंग आकर धनपाल ने धृष्टबुद्धि को घर से निकाल दिया।
बेघर और निर्धन होने पर उसके दोस्तों ने भी उसका साथ छोड़ दिया। उसके पास कुछ भी खाने पीने को नहीं था तो वह चोरी करके अपना गुजारा करने लगा। एक बार उसे राजा ने पकड़ लिया, लेकिन धर्मात्मा पिता की संतान होने के कारण छोड़ दिया गया। दूसरी बार पकड़ा गया तो राजा ने उसे जेल में डाल दिया।दूसरी बार चोरी करते हुए पकड़ा गया तो उसे नगर से बाहर कर दिया गया।
एक दिन वह भूख प्यास से परेशान होकर इधर-उधर घूम रहा था, तभी उसे कौडिन्य ऋषि के आश्रम दिखा और वह वहां चला गया। वह वैशाख का महीना था। ऋषि गंगा स्नान करके आए थे, उनके गीले वस्त्रों के छीटें उस पर पड़े, ऐसे में गंगाडल की छींटे से धृष्टबुद्धि को कुछ बुद्धि आई। उसने ऋषि कौडिन्य को प्रणाम किया और कहने लगा कि उसके बहुत पाप कर्म किए हैं। इससे मुक्ति का मार्ग बताएं।
ऋषि कौडिन्य को धृष्टबुद्धि पर दया आ गई। उन्होंने कहा कि वैशाख शुक्ल एकादशी को मोहिनी एकादशी का व्रत करो, इससे तुम्हारा उद्धार होगा। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे और तुम पुण्य के भागी बनोगे। उन्होंने मोहिनी एकादशी व्रत की पूरी विधि बताई। मोहिनी एकादशी के दिन उसने ऋषि के बताए अनुसार विधि विधान से व्रत किया और विष्णु पूजन किया। व्रत के पुण्य प्रभाव से वह पाप रहित हो गया। जीवन के अंत में वह गरुड़ पर सवार होकर विष्णु धाम चला गया।