CM Yogi Adityanath : महायोगी गुरु गोरखनाथ जी ने जीवन के रहस्यों को अपने ग्रन्थों के माध्यम से उद्घाटित किया
UP CM Yogi Adityanath ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में हम नए भारत का दर्शन कर रहे हैं। नए भारत में आयुर्वेद तथा योग के माध्यम से भारतीय ज्ञान की धारा को पुनर्जीवित करने का कार्य किया जा रहा है। देश में परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों से जुड़े हुए केन्द्र स्थापित किये जा रहे हैं। ऑल इण्डिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ आयुर्वेद की स्थापना हो रही है। 21 जून की तिथि पर विश्व योग दिवस का आयोजन किया जाता है। दुनिया के अनेक देश योग विधा से जुड़कर भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। सभी का उद्देश्य आरोग्यता को प्राप्त करना है।
CM Yogi Adityanath आज गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइसेस, गोरखपुर में आयुर्वेद-योग-नाथपंथ विषयक तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी को मुख्य अतिथि के तौर पर सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने इंटरनेशनल जर्नल ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन-2025, आयुर्वेद औषधि प्रयोग विज्ञान तथा नाथ योग एवं आयुर्वेद पुस्तक का विमोचन किया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय या संस्थान अपने रचनात्मक कार्यों के माध्यम से वर्तमान पीढ़ी को नवीन ज्ञान से ओत-प्रोत कर सकते हैं। वैदिक सूक्त कहता है कि ’आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः’ अर्थात ज्ञान के लिए सभी दरवाजे खुले हुए हैं। ज्ञान प्राप्ति के किसी भी मार्ग को अवरुद्ध नहीं करना चाहिए। इस प्रकार की संगोष्ठियां भिन्न-भिन्न विषयों पर ज्ञान प्रदान करने की सशक्त माध्यम होती हैं। वह ज्ञान की जड़ता को रोकने व विद्वता से ओत-प्रोत करने में एक बड़ी भूमिका का निर्वहन करती हैं।
CM Yogi Adityanath ने कहा कि भारत की सभ्यता और संस्कृति अत्यन्त प्राचीन है। अलग-अलग कालखण्डों में ऋषि मुनियों ने ज्ञान की धारा को अपने अनुभव व चेतना की दिव्य अनुभूति से नया आयाम प्रदान किया। भारत की भूमि दिव्यज्ञान और चेतना की भूमि रही है। महर्षि वेदव्यास का पूरा नाम कृष्ण द्वैपायन व्यास था। उनके जीवन दर्शन का ज्ञान प्राप्त कर आपको भारत की परम्परा तथा व्यवस्था पर गौरव की अनुभूति होगी। महर्षि वेदव्यास ने कुरूवंश की आठ पीढ़ियों का नेतृत्व किया। इस दृष्टि से उनका अनुमानित जीवन काल 200-250 वर्ष रहा होगा। वर्तमान समय में क्या इस प्रकार का दीर्घावधि जीवन सम्भव है। भारतीय ज्ञान की धारा को चार संहिताओं के रूप में लिपिबद्ध करने का नेतृत्व महर्षि वेदव्यास ने किया। उन्होंने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद को लिपिबद्ध कर आने वाली पीढ़ियों के लिए समर्पित किया। पहले भारतीय ज्ञान की धारा श्रवण तथा गुरु शिष्य परम्परा से चलती थी। उन्होंने समय-समय पर चर्चा-परिचर्चा के माध्यम से ज्ञान की परम्परा को आगे बढ़ाने वाली भारतीय ऋषियों की टीम को नेतृत्व प्रदान किया। महर्षि वाल्मीकि ने वैदिक संस्कृति को व्यवहारिक ज्ञान से जोड़ने का कार्य किया था। महर्षि वेदव्यास ने इस क्रम को आगे बढ़ाया। इस श्रृंखला को पुराणों के ज्ञान के साथ जोड़ने का काम भी किया गया।
CM Yogi Adityanath ने कहा कि महर्षि वेदव्यास ने महाभारत युद्ध के पश्चात महाभारत महाकाव्य की रचना की थी। महाभारत के मूल पाठ में 20,000 श्लोक हैं। अलग-अलग कालखंडों में वृद्धि होते हुए श्लोकों की संख्या 01 लाख से अधिक पहुंच गई है। 18 पुराणों के उप पुराणों की रचना शैली तथा भाषा कैसी होनी चाहिए। इसके निर्धारण का श्रेय भी महर्षि वेदव्यास को जाता है। श्रीमद्भागवत महापुराण आज से 5,000 वर्ष पूर्व रचा गया। यह एक महत्वपूर्ण पुराण है। जब हम कोटि-कोटि भारतवासियों के मुक्ति तथा मोक्ष ग्रन्थ की बात करते हैं, तो श्रीमद्भागवत महापुराण की चर्चा अवश्य होती है। मोक्ष का तात्पर्य केवल व्यक्ति का जीवन मरण के चक्र से मुक्त होना नहीं होता, बल्कि मोक्ष का मतलब सफलता के चरम तक पहुंचना है। भारतीय मनीषा कहती है कि सभी लोग धर्म का अनुसरण करें, क्योंकि धर्म से ही अर्थ और कामनाओं की सिद्धि हो सकती है। इससे मोक्ष स्वयं ही प्राप्त हो जाता है। भारतीय परम्परा कहती है कि ’शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात् स्वस्थ शरीर से ही धर्म के सभी साधन सम्भव है। रुग्ण शरीर से किसी भी पुरुषार्थ को प्राप्त नहीं किया जा सकता। स्वस्थ शरीर प्राप्त करने के लिए हमें अपनी दिनचर्या नियमित करनी होगी। नियम संयम का ध्यान रखना होगा। इसके माध्यम से अंतःकरण तथा वाह्य शरीर की शुद्धि सम्भव है। आप समय से सोएं तथा सूर्योदय के पूर्व जागें। सूर्योदय के पश्चात जागने से शरीर शिथिल रहता है। विकार अनियमित दिनचर्या से प्रारम्भ होते हैं। सूर्योदय से पूर्व नित्य क्रिया सम्पन्न कर पूजा उपासना करें तथा अन्य कार्य निपटाएं। यदि आपके पास समय है, तो सुबह की सैर व प्राणायाम का अभ्यास करें। प्राणायाम के समय को धीरे-धीरे विस्तारित करें। समय से नाश्ता व भोजन ग्रहण करना चाहिए। ऐसा करने से शरीर में चेतना जाग्रत होती है।
CM Yogi Adityanath ने कहा कि भारतीय विद्वानों की व्यापक साधना और सिद्धि का चरम उत्कर्ष आयुर्वेद व योग के माध्यम से देखने को मिलता है। आयुर्वेद कहता है कि चराचर जगत पंचभूतों से निर्मित है। इन्हीं पंचभूतों से हमारा शरीर भी बना है। वात, पित्त और कफ का निश्चित समन्वय शरीर की जीवन्तता को बनाए रखता है। अनुपात में विसंगति आने पर व्यक्ति सम्बन्धित रोग से ग्रस्त हो जाता है। इसके उपचार के लिए आयुर्वेद से सम्बन्धित पंचकर्म पद्धति का प्रयोग किया जाता है। इनमें वमन, विरेचन, नस्य, रक्तमोक्षण, निरूहवस्ती सम्मिलित हैं।
CM Yogi Adityanath ने कहा कि महायोगी गुरु गोरखनाथ जी कहते हैं कि ‘पिंड माहि ब्रह्माण्ड समाया, यत पिंडे तत ब्रह्माण्डे’ अर्थात जो इस ब्रह्माण्ड में है वही हमारे शरीर में भी है। गोरखनाथ जी का नाथपंथ से जुड़ा क्रियात्मक योग भी ब्रह्माण्ड के रहस्यों को शरीर में ही देखने का कार्य करता है। सिद्धि की पराकाष्ठा पर पहुंचा हुआ योगी ज्ञान की खोज में बाहर नहीं भटकता। वह अपने अंतःकरण को टटोलने का काम करता है। हठयोग, ज्ञान योग व कर्म योग आदि योग पद्धतियों की प्रारम्भिक पृष्ठभूमि एक जैसी है। यह पृष्ठभूमि नियम और संयम से शुरू होती है। राजयोग इसे यम और नियम के साथ जोड़ देता है। हठयोग इसे हठकर्म के साथ जोड़ता है। जहां आयुर्वेद में पंचकर्मों का महत्व है, वहीं हठयोग में षट्कर्म को वरीयता दी जाती है। इनमें धौति, बस्ती, नेति, नौली, त्राटक, कपालभाति सम्मिलित हैं। यदि कोई व्यक्ति इन नियमों का पालन करेगा तो देश, काल और परिस्थित जन्य विकारों से मुक्त रहेगा। विशेष ईश्वरीय व गुरु कृपा अथवा स्वयं की साधना से स्वास्थ्य के चरम उत्कर्ष को प्राप्त किया जा सकता है। दिव्य औषधियां भी इस कार्य में सहायक होती हैं। क्रियात्मक योग का पक्ष नाथ योगियों द्वारा प्रदान किया गया। यह योग की विशिष्ट विधा है। नाथ योगियों के नाम पर अनेक आसन भी हैं इनमें गोरक्षासन, मत्स्येन्द्रासन, गोमुखासन आदि सम्मिलित हैं। कौन सी क्रिया का लाभ कब प्राप्त किया जा सकता है। इसके बारे में बताया गया है। यौगिक क्रियाओं के माध्यम से उन्होंने शरीर विज्ञान पर भी प्रकाश डाला है।
CM Yogi Adityanath ने कहा कि नाथ योगी नाथ जनेऊ धारण करता है। दीक्षा लेते समय उन्हें इसके बारे में जानकारी प्रदान की जाती है। यह जनेऊ शरीर की नाड़ियों के बारे में अवगत कराता है। शरीर में 06 प्रमुख नाड़ियां हैं। सामान्य रूप से हम इड़ा, पिंगला तथा सुषुम्ना नाड़ियों का अनुभव करते हैं। योग प्रधान होने के कारण नाथ योग ने इसे अपने जीवन का अंग बनाया है। यह परम्परा अनवरत चल रही है। नाथ योगियों ने चेतना के उच्च आयाम तक पहुंचने का कार्य किया है। चेतना के तीन आयाम माने गए हैं। हम अपने चेतन मन से सोचते हैं। चेतन मन मनुष्य के मन का बहुत छोटा सा भाग है। देखी, सुनी अथवा पढ़ी जाने वाली बातें तथा जन्म जन्मांतर के संस्कार अवचेतन मन में संचित हो जाते हैं। अवचेतन मन के कारण बहुत सारी बातें हमारी स्मृति में अचानक आती हैं।
CM Yogi Adityanath ने कहा कि साधना के चरम उत्कर्ष पर अवचेतन मन के रहस्यों केबारे में पता चलता है। अवचेतन मन की संचित स्मृतियों के बारे में जानने के लिए हमें रिवर्स गियर में आना पड़ेगा। अर्थात यदि कुल 100 दिन मान लिए जाएं तो पहले आप 99 वें दिन पर पहुंचिए, उसके पश्चात 98 वें दिन पर, फिर क्रमानुसार पहले दिन पर पहुंचने का प्रयास करिए। प्रत्येक दिन पीछे जाने के लिए आपको प्रत्येक घंटे को आधार बनाना पड़ेगा। यदि आप ऐसा करेंगे तो अपने अवचेतन मन को जाग्रत करने में सफल हो सकेंगे। विशिष्ट साधना के माध्यम से अचेतन मन को भी जाग्रत किया जा सकता है। आपके पास सुपर कम्प्यूटर से भी अच्छा कम्प्यूटर मौजूद है। इसका कभी कोई उपयोग नहीं कर पाया। भारत का ऋषि ही इसका उपयोग कर पाया है। इन ऋषियों में महायोगी गुरु गोरखनाथ जी भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने अवचेतन मन की चेतना के उस पार जाकर जीवन के रहस्यों को अपने ग्रन्थों के माध्यम से उद्घाटित किया।
CM Yogi Adityanath ने कहा कि सामान्य व्यक्ति के लिए ध्यान साधना में बैठना बहुत कठिन कार्य होता है, क्योंकि आपका मन बहुत चंचल है। सामान्य व्यक्तियों को प्राणायाम साधना के माध्यम से मन की वृत्तियों से प्राणों का तारतम्य स्थापित करना चाहिए। यदि आप ऐसा करेंगे तो आपका ध्यान एक जगह केंद्रित हो सकेगा। श्वांस के साथ जुड़ता हुआ दिखाई देगा। अलग-अलग साधना पद्धतियों में इसे अलग-अलग नामों से जाना गया है। महायोगी गुरु गोरखनाथ ने इसे जपाजप कहा। महात्मा बुद्ध ने इसे दूसरी साधना के माध्यम से आगे बढ़ाने का कार्य किया। विभिन्न ऋषियों ने इसके माध्यम से जीवन को चरम उत्कर्ष तक पहुंचाने का काम किया। जपाजप तथा विपश्यना आदि अवचेतन या अचेतन मन को जाग्रत करने के महत्वपूर्ण माध्यम हैं। इसे उच्च आयाम पर पहुंचा हुआ साधक प्राप्त कर सकता है। भारतीय परम्परा में अष्ट सिद्धि नव निधि का उल्लेख किया गया है। यह सिद्धियां साधना व प्रयास के माध्यम से प्राप्त की जा सकती हैं।
CM Yogi Adityanath ने कहा कि आयुर्वेद, योग तथा नाथपंथ परस्पर पूरक हैं। यह तीनों पद्धतियां व्यावहारिक पक्षों पर विश्वास करती हैं। तीनों ने माना है कि पंच भौतिक शरीर ब्रह्माण्ड से अलग नहीं है। हम जो कुछ ब्रह्माण्ड में ढूंढ रहे हैं यदि वह इस काया में ढूंढेंगे तो हमें आसानी से प्राप्त हो जाएगा। समय के अनुरूप हम लोग इन पद्धतियों से विरत होते गए। जो पद्धति हमारी विरासत थी, उसे हमने हेय दृष्टि से देखा। वाह्य ज्ञान को महत्व प्रदान किया गया। इसके परिणाम हम सबके सामने हैं। हम अपनी उपलब्धियों से वंचित होते गए। एक समय ऐसा भी आया जब योग व आयुर्वेदिक औषधियों को अन्य लोगों ने अपने नाम पेटेंट कराना प्रारम्भ कर दिया।
भारतीय मनीषा ने धर्म के अर्थ को केवल उपासना विधि तक सीमित न रखते हुए इसे व्यापक स्वरूप प्रदान किया। उन्होंने धर्म को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में ग्रहण किया। कर्तव्य, सदाचार और नैतिक मूल्यों के जिस प्रवाह पर व्यक्ति और समाज का जीवन टिका होता है, भारतीय मनीषा ने उस विशिष्ट जीवन पद्धति को धर्म के रूप में स्वीकार किया है। स्वयं को हिंदू साबित करने के लिए मंदिर जाना अथवा किसी ग्रंथ में श्रद्धा रखना आवश्यक नहीं है। हम अकर्मण्यता को धर्म नहीं मानते। पतित व्यक्ति को धार्मिक नहीं मानते। दुराचारी को सामाजिक मूल्यों के लिए खतरा मानते हैं। सामाजिक मूल्यों से विरत व्यक्ति धर्म के लिए अग्राह्य होता है।
इस अवसर पर महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 सुरिन्दर सिंह, प्राचार्य गुरु गोरखनाथ इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज डॉ0 गिरधर वेदान्तम, सलाहकार मुख्यमंत्री श्री अवनीश कुमार अवस्थी, आयुर्वेद व योग के विशेषज्ञ गण सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।