BJP in UP: भाजपा को लोकसभा चुनाव में अयोध्या, काशी और मथुरा में भी कड़ी मेहनत करनी होगी। हेमामालिनी की जीत के बावजूद, मथुरा की पांच में से चार विधानसभा सीटों पर भाजपा को कम वोट मिले हैं।
BJP in UP: भाजपा को लोकसभा चुनाव में अयोध्या, काशी और मथुरा में भी कड़ी मेहनत करनी होगी। काशी में मार्जिन घट गया है और भाजपा अयोध्या की सीट खो चुकी है। हेमामालिनी की मथुरा में लगातार तीसरी जीत होने के बावजूद, भाजपा को अन्य विधानसभा क्षेत्रों में संतोषजनक मत प्रतिशत नहीं मिल रहा है इसलिए पार्टी नेतृत्व को तत्काल योजना बनाकर काम करना होगा।
उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री लक्ष्मीनारायण चौधरी ने छाता विधानसभा क्षेत्र में काम किया, जिससे हेमामालिनी को 2022 के विधानसभा चुनाव में मंत्री को मिले वोट से 7030 मत अधिक मिले, जबकि मथुरा विधानसभा सीट से 21226 मत, गोवर्धन विधानसभा सीट से 27,805 मत और बल्देव विधानसभा सीट से 15,187 मत मिले, जो इन क्षेत्रों के विधायकों के लिए खतरा पैदा करता है।
मांट विधानसभा सीट में दो विधायक होने के बावजूद हेमा को सिर्फ 2377 वोट प्राप्त हुए। इस क्षेत्र में कई गांवों में लोगों ने मतदान का बहिष्कार किया, जबकि गोवधर्न विधानसभा के विधायक पर मुखराई के लोगों ने गंभीर आरोप लगाए जो बताते हैं कि भाजपा में भी कुछ गलत है और विधायक अपने क्षेत्रों में जनता का काम करने के बजाय अपना स्वागत करते हैं।
2022 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदीप माथुर लगभग 50 हजार के अंदर सिमट गए थे, इसलिए मुकेश धनगर को दो लाख से अधिक वोट मिले, जबकि कांग्रेस का कोई बड़ा नेता मथुरा में चुनाव के दौरान नहीं आया था और कांग्रेस ने भी कोई बड़ा जनहितकारी काम नहीं किया था इससे भाजपा नाराज है।महेश पाठक को पिछले लोकसभा चुनाव में मात्र लगभग 30 हजार वोट मिले थे।
नथाराम उपाध्याय, आरएसएस और भाजपा से जुड़े मथुरा विधान सभा क्षेत्र के एक पुराने कार्यकर्ता, कहते हैं कि इस चुनाव में भाजपा के संगठन की एकता स्पष्ट हो गई है। हेमा के दैनिक कार्यक्रम को सार्वजनिक नहीं किया गया, इससे पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हुई, जो लोकसभा चुनाव में दिखाई दी।
योगी के प्रयासों, मोदी की लोकप्रियता और हेमामालिनी की अच्छी छवि को देखते हुए भाजपा प्रत्याशी लगभग पांच लाख से अधिक मतों से जीत सकता था। भाजपा के पर्यवेक्षकों का आरोप है कि वे होटल में बस बैठे रहे और कोई काम नहीं किया। यदि मथुरा में जयन्त की आधा दर्जन सभाएं कराई जातीं तो जाटों की नाराज़गी कम हो सकती थी।
उपाध्याय ने कहा कि भाजपा संगठन ने जिन गांवों के लोगों ने बायकाट की घोषणा की थी, उन्हें मनाने का कोई प्रयास नहीं किया।अधिकांश कार्यकर्ता ने 400 पार के जादू पर ही भरोसा किया, लेकिन मोदी और योगी की तरह अपनी ओर से कोई प्रयास नहीं किया। उन्होंने कहा कि उन्हें और अन्य पुराने कार्यकर्ताओं को शहर की दो विधानसभा क्षेत्रों और कम से कम पांच दर्जन कालोनियों में ले जाया जाता तो हेमामालिनी को कम से कम पचास हजार मत और अधिक मिलते।
RSS के प्रचारक बल्देव निवासी सुरेश भरद्वाज का कहना है कि बल्देव विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी को कम मत मिलने का कारण पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और युवा कार्यकर्ताओं का एसयूवी में घूमकर अपना महत्व दिखाना है। अगर ऐसा होता है तो भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव में हार मिल सकती है।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता, जो नाम नहीं बताना चाहते हैं, ने कहा कि पार्टी का प्रदर्शन सुधर नहीं पाएगा जब तक जिला और महानगर अध्यक्षों को ऊपर से थोपा जाएगा। जब पहली बार जिला अध्यक्ष का विधिवत चुनाव हुआ, तो जिले के कार्यकर्ता उसे देखते थे और उसके विचारों को मानते थे। वर्तमान में, अध्यक्ष की नियुक्ति लखनऊ से होती है, इसलिए नियुक्त अध्यक्ष अपने परिवार के कुछ लोगों को एक कार्यकारिणी बना लेता है, लेकिन इसका जिले के ग्रामीण क्षेत्र पर कोई असर नहीं होता।यह भी लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी को मिले कम वोटों का कारण है।