Delhi News : हाल ही में संपन्न हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली। पार्टी ने खुद अपनी हार के कारण बताए और दिल्ली में हुई बैठक में आगे की मजबूत रणनीति पर चर्चा की। कांग्रेस ने स्वीकार किया कि उन्होंने चुनाव पूरी ताकत से लड़ा, लेकिन जनता का विश्वास हासिल करने में नाकाम रहे।
कांग्रेस ने मानी अपनी कमजोरी, भविष्य की रणनीति पर किया मंथन
कांग्रेस का मानना है कि इस बार पार्टी ने विधानसभा चुनाव मजबूती से लड़ा, लेकिन जनता को अपने पक्ष में मतदान के लिए पूरी तरह से आश्वस्त नहीं कर पाई। सत्ता विरोधी लहर के बावजूद आम आदमी पार्टी का वोट बैंक कांग्रेस में नहीं बदल सका, जिससे भाजपा को सीधा फायदा मिला।
चुनाव परिणामों की समीक्षा के लिए कांग्रेस की दिल्ली इकाई में बैठक आयोजित की गई, जिसमें प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव, प्रभारी काजी निजामुद्दीन, पूर्व मंत्री डॉ. नरेंद्र नाथ, हारून यूसुफ, वरिष्ठ नेता जितेंद्र कोचर, अभिषेक दत्त समेत कई अन्य नेता शामिल हुए।
संगठन में नए चेहरों को मिलेगा मौका
बैठक में हार के कारणों और आगामी रणनीति पर चर्चा हुई। नेताओं ने माना कि पार्टी को सिर्फ पुराने चेहरों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता, बल्कि नए चेहरों को भी अवसर देना जरूरी है। हालांकि, इस बार कई युवाओं को टिकट दिया गया था, लेकिन आगे संगठन में भी नई पीढ़ी को अहम जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
इसके साथ ही, लंबे समय से सक्रिय न रहने वाले नेताओं को पद से हटाकर, उन कार्यकर्ताओं को मौका दिया जाएगा जो पार्टी के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। कांग्रेस ने संगठन को मजबूत करने और विस्तार करने का भी प्रस्ताव रखा है।
कांग्रेस का विस्तार और आप नेताओं को शामिल करने की योजना
बैठक में यह प्रस्ताव रखा गया कि कांग्रेस का दायरा बढ़ाना होगा। आम आदमी पार्टी के कई वरिष्ठ नेता कांग्रेस में शामिल होना चाहते हैं, इसलिए उन्हें पार्टी में लाने की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी। तय किया गया कि आप के कुछ नेताओं को जल्द ही कांग्रेस की सदस्यता दिलाई जाएगी।
चुनाव प्रचार में लापरवाही पर असंतोष
बैठक में चुनाव प्रचार के दौरान हुई ढिलाई को लेकर भी असंतोष जताया गया। चर्चा में यह बात सामने आई कि शीर्ष नेताओं ने बहुत कम समय के लिए प्रचार किया, जिससे चुनावी रणनीति प्रभावित हुई। इसके अलावा, स्टार प्रचारकों की सूची में ऐसे नाम जोड़े गए, जिन्हें उनके अपने निर्वाचन क्षेत्रों में भी खास तवज्जो नहीं मिलती। यहां तक कि कुछ उम्मीदवारों को भी स्टार प्रचारक बना दिया गया, जबकि उनके लिए पहले अपना चुनाव प्रचार करना अधिक जरूरी था