Vat Savitri Katha: इस कथा के बिना वट सावित्री व्रत पूरा नहीं होता।

Vat Savitri Katha: इस कथा के बिना वट सावित्री व्रत पूरा नहीं होता।

Vat Savitri Katha: इस वर्ष आप वट सावित्री व्रत 6 जून को करेंगे। यह ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर होगा। सुहागिन महिलाएं इस दिन अपने पति के लिए उपवास करती हैं। ऐसा कहते हैं

इस वर्ष आप वट सावित्री व्रत 6 जून को करेंगे। यह ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर होगा। सुहागिन महिलाएं इस दिन अपने पति के लिए उपवास करती हैं। यह कहा जाता है कि इस दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लाए थे। यह व्रत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय है। यह ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिन तक मनाया जाता है।दक्षिण भारत में इसे वट पूर्णिमा कहते हैं या ज्येष्ठ पूर्णिमा। आज बड़े पेड़ के नीचे पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जिस तरह बड़ के पेड़ की उम्र लंबी होती है, उसी तरह महिलाओं के पति की उम्र भी लंबी हो। वट वृक्ष को आयुर्वेद के अनुसार परिवार का वैद्य माना जाता है।

पूजा करने से पहले से यहां सुने व्रत की कथा

पुराणों में वर्णित सावित्री की कथा इस प्रकार है- राजा अश्वपति की अकेली संतान का नाम था सावित्री। सावित्री ने राजा द्युमत्सेन के बेटे सत्यवान को से विवाह किया। विवाह से पहले उन्हें नारद जी ने बताया कि सत्यवान के आयु कम है, तो भी सावित्री अपने फैसले से डिगी नहीं। वह सत्यवान के प्रेम में सभी राजसी वैभव त्याग कर  उनके परिवार की सेवा करते हुए वन में रहने लगीं। जिस दिन सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था, उस दिन वह लकड़ियां काटने जंगल गए।  वहां मू्च्छिछत होकर गिर पड़े। उसी समय यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। तीन दिन से उपवास में रह रही सावित्री उस घड़ी को जानती थीं, अत: बिना परेशान हुए  यमराज से सत्यवान के प्राण वापस देने की प्रार्थना करती रही, लेकिन यमराज नहीं माने। तब सावित्री उनके पीछे-पीछे ही जाने लगीं। कई बार मना करने पर भी वह नहीं मानीं, तो सावित्री के साहस और त्याग से यमराज प्रसन्न हुए और कोई तीन वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने सत्यवान के दृष्टिहीन  माता-पिता के नेत्रों की ज्योति मांगी, उनका छिना हुआ राज्य मांगा और अपने लिए 100 पुत्रों का वरदान मांगा। तथास्तु कहने के बाद यमराज समझ गए कि सावित्री के पति को साथ ले जाना अब संभव नहीं। इसलिए उन्होंने सावित्री को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़कर वहां से अंतर्धान हो गए। उस समय सावित्री अपने पति को लेकर वट वृक्ष के नीचे ही बैठी थीं।
इसीलिए इस दिन महिलाएं अपने परिवार और जीवनसाथी की दीर्घायु की कामना करते हुए वट वृक्ष को भोग अर्पण करती हैं, उस पर धागा लपेट कर पूजा करती हैं।

 

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