Union Minister राजीव ने आज सिक्किम में भारत के प्रथम जैविक मत्स्य पालन क्लस्टर का शुभारंभ किया, गुवाहाटी में 50 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन/शिलान्यास किया

Union Minister : सिक्किम के सोरेंग जिले में अपनी तरह का पहला जैविक मत्स्य पालन क्लस्टर किसानों की आय को बढ़ाएगा, जलीय कृषि में स्थिरता को बढ़ावा देगा


Union Minister : सिक्किम के सोरेंग जिले में अपनी तरह का पहला जैविक मत्स्य पालन क्लस्टर किसानों की आय को बढ़ाएगा, जलीय कृषि में स्थिरता को बढ़ावा देगा

  • एंटीबायोटिक, रसायन और कीटनाशकों से मुक्त जैविक मछलियां वैश्विक पर्यावरण के प्रति जागरूक बाजारों में प्रवेश करेंगी; नाबार्ड वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करेगा

Union Minister राजीव रंजन सिंह उर्फ ​​ललन सिंह ने आज असम के गुवाहाटी में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत 50 करोड़ रुपये की लागत वाली 50 प्रमुख परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। यह परियोजना अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम को छोड़कर पूर्वोत्तर क्षेत्र के सभी राज्यों को कवर करती है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के कार्यान्वयन की समीक्षा के लिए पूर्वोत्तर राज्यों की बैठक में केंद्रीय राज्य मंत्री प्रो. एसपी बघेल और श्री जॉर्ज कुरियन, पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों के मत्स्य पालन के अन्य प्रभारी मंत्री, मत्स्य पालन सचिव डॉ. अभिलक्ष लिखी और कई प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्ति भी शामिल हुए।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में मत्स्य पालन के सतत विकास के प्रयासों को जारी रखने के लिए, श्री राजीव रंजन सिंह ने आज असम के गुवाहाटी, में पूर्वोत्तर क्षेत्र राज्य सम्मेलन-2025 में पीएमएमएसवाई के तहत सिक्किम राज्य में जैविक मत्स्य पालन और जलीय कृषि के विकास के लिए सिक्किम के सोरेंग जिले में जैविक मत्स्य पालन क्लस्टर को अधिसूचित और लॉन्च किया, जो भारत में अपनी तरह का पहला है, जो राज्य में मत्स्य पालन के सतत विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सिक्किम सरकार पहले ही जैविक खेती को अपना चुकी है, जिससे टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल कृषि प्रणालियों के लिए एक सशक्त स्थान बनाने में मदद मिली है। जैविक मत्स्य पालन और जलीय कृषि की शुरुआत राज्य के सभी क्षेत्रों में जैविक, टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल प्रणालियों को बढ़ावा देने के व्यापक दृष्टिकोण के अनुरूप होगी।

स्थायित्व की ओर कदम: जैविक खेती ही आगे का रास्ता है

जैविक मत्स्य पालन क्लस्टर हानिकारक रसायनों, एंटीबायोटिक दवाओं और कीटनाशकों के उपयोग से बचते हुए पारिस्थितिक रूप से स्वस्थ मछली पालन प्रणाली पर ध्यान केंद्रित करता है। यह पर्यावरण का न्यूनतम प्रदूषण भी सुनिश्चित करता है और जलीय इकोसिस्टम को नुकसान से बचाता है, जो टिकाऊ मछली उत्पादन प्रणालियों में योगदान देता है। जैविक उत्पाद आम तौर पर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में प्रमुखता से आकर्षित करते हैं। एक जैविक जलीय कृषि क्लस्टर की स्थापना करके, सिक्किम इस बढ़ते बाजार और जैविक मछली एवं मछली उत्पादों के निर्यात का लाभ उठा सकता है। सिक्किम में अमूर कार्प के साथ-साथ अन्य कार्प पर विशेष तौर पर केंद्रित एक जैविक मत्स्य पालन और जलीय कृषि क्लस्टर कई आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक लाभ प्रदान करेगा। राज्य के पहले से ही सफल जैविक कृषि के ढांचे में जैविक मछली पालन को जोड़कर, सिक्किम खुद को टिकाऊ जलीय कृषि में एक अग्रणी के रूप में स्थापित कर सकता है। यह न केवल राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ा सकता है बल्कि टिकाऊ, पर्यावरण के अनुकूल खाद्य उत्पादन की ओर वैश्विक बदलाव में भी योगदान दे सकता है।

सिक्किम में मत्स्य पालन और जलीय कृषि जैविक क्लस्टर विकसित करने में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) एक प्रमुख हितधारक है। नाबार्ड आवश्यक मत्स्य पालन इंफ्रास्ट्रक्चर और क्षमता निर्माण के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने के अलावा, राज्य में मछुआरों की सहकारी समितियों को शामिल करके और मत्स्य पालन आधारित किसान उत्पादक संगठनों (एफएफपीओ) के गठन के माध्यम से जैविक क्लस्टर के विकास में भी सहायता करेगा। यह पहल जलीय कृषि से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर और प्रौद्योगिकी में निजी निवेश को भी प्रोत्साहित करेगी, सिक्किम के ठंडे पानी के मत्स्य पालन की ब्रांडिंग करेगी, पर्यटन को आकर्षित करेगी और साथ ही मूल्य श्रृंखला को मजबूत करेगी, स्थानीय मछुआरों और मछली उत्पादक किसानों को सशक्त बनाएगी और सिक्किम राज्य में मत्स्य पालन क्षेत्र में सतत विकास को बढ़ावा देगी।

क्लस्टर आधारित पहल: किसानों की आय बढ़ाने के लिए, मत्स्य पालन मूल्य श्रृंखला को मजबूत करेः

प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (पीएमएमएसवाई), भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र के सतत और जिम्मेदार विकास के माध्यम से नीली क्रांति लाने की एक योजना है, जिसे मत्स्य पालन विभाग, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कार्यान्वित किया गया है। इसमें अन्य बातों के साथ -साथ मत्स्य पालन क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने, व्यापक तौर पर अर्थव्यवस्थाओं को सुविधाजनक बनाने, उच्च आय सृजित करने, संगठित तरीके से मत्स्य पालन और जलीय कृषि के विकास और विस्तार में तेजी लाने के लिए क्लस्टर-आधारित पहल को लागू करने का प्रावधान है।

क्लस्टर-आधारित प्रयास उत्पादन से लेकर निर्यात तक, संपूर्ण मत्स्य पालन मूल्य श्रृंखला में सूक्ष्म, लघु, मध्यम और बड़े सभी भौगोलिक रूप से जुड़े उद्यमों को एकजुट करके प्रतिस्पर्धात्मकता और दक्षता को बढ़ाता है। यह सहयोगी मॉडल मजबूत संबंधों के माध्यम से वित्तीय व्यवहार्यता में सुधार करता है, मूल्य श्रृंखला की कमी का करता है, और नए व्यावसायिक अवसर और आजीविका का सृजन भी करता है। साझेदारी और संसाधन साझाकरण को बढ़ावा देकर, इसका उद्देश्य लागत कम करना, नवाचार को बढ़ावा देना और टिकाऊ प्रणालियों का समर्थन करना है।

मत्स्य विभाग ने क्षेत्रीय और स्थान विशेष की जरूरतों के अनुसार मोती, समुद्री शैवाल, सजावटी मत्स्य पालन, जलाशय मत्स्य पालन, मछली पकड़ने के बंदरगाह, खारे पानी के जलीय कृषि, ठंडे पानी के मत्स्य पालन, समुद्री पिंजरा संस्कृति, मीठे पानी के जलीय कृषि, खारे पानी के मत्स्य पालन, द्वीप मत्स्य पालन क्लस्टर, जैविक मत्स्य पालन, वेटलैंड मत्स्य पालन और अन्य क्षेत्रों सहित प्रमुख क्षेत्रों में उत्पादन और प्रसंस्करण क्लस्टर के रूप में क्लस्टर आधारित विकास पर एक रणनीतिक फोकस की परिकल्पना की है। ये क्लस्टर मत्स्य पालन और जलीय कृषि के सतत विकास के लिए मछुआरों, उद्यमों, व्यक्तियों, स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी), संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी), मछली किसान उत्पादक संगठनों (एफएफपीओ), मछली किसानों, प्रोसेसर, ट्रांसपोर्टरों, खुदरा विक्रेताओं, थोक विक्रेताओं, उपभोक्ताओं, सहकारी समितियों, मत्स्य पालन स्टार्ट-अप और अन्य संस्थाओं सहित मछली विक्रेताओं जैसे विभिन्न मूल्य श्रृंखला हितधारकों को शामिल करेंगे। मत्स्य पालन विभाग, भारत सरकार ने पहले ही चार मत्स्य पालन संबंधी क्लस्टरों को अधिसूचित कर दिया है, जिनमें झारखंड के हजारीबाग जिले में मोती क्लस्टर, तमिलनाडु के मदुरै जिले में सजावटी मत्स्य पालन क्लस्टर, केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में समुद्री शैवाल क्लस्टर तथा अंडमान एवं निकोबार में टूना क्लस्टर शामिल हैं।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में मत्स्य पालन पर ध्यान

पूर्वोत्तर क्षेत्र (एनईआर) मत्स्य पालन और जलीय कृषि में आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत की यात्रा में सबसे आगे है, जो समावेशी विकास के लिए सरकार की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है । अपने प्रचुर मीठे पानी के संसाधनों और असाधारण जलीय जैव विविधता के साथ, पूर्वोत्तर क्षेत्र न केवल संभावनाओं का क्षेत्र है, बल्कि प्रगति का एक गतिशील केंद्र भी है। जैव विविधता हॉटस्पॉट के रूप में विश्व स्तर पर पहचाने जाने वाले , एनईआर आर्थिक विकास और आजीविका वृद्धि के लिए भारत की रणनीति का आधार बन गया है ।

सरकार ने नीली क्रांति योजना , मत्स्य पालन और जलीय कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर विकास कोष (एफआईडीएफ) और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) जैसी प्रमुख योजनाओं के माध्यम से मत्स्य पालन के लिए 2,114 करोड़ रुपये के कुल निवेश को मंजूरी दी है । इन पहलों ने इंफ्रास्ट्रक्चर को काफी मजबूत किया है, उत्पादकता में सुधार किया है और टिकाऊ प्रणालियों को मजबूत किया है। इसके परिणामस्वरूप, पूर्वोत्तर में अंतर्देशीय मछली उत्पादन 2014-15 में 4.03 लाख टन से बढ़कर 2023-24 में 6.41 लाख टन हो गया है, जिससे 5 प्रतिशत की प्रभावशाली वार्षिक वृद्धि दर हासिल हुई है ।

ऐसी उपलब्धियां गतिशील नीतियों और लक्षित क्रियाकलापों की प्रभावशीलता को चिन्हित करती हैं, जिसने पूर्वोत्तर को भारत की नीली अर्थव्यवस्था के विजन के प्रमुख वाहक के रूप में मजबूती से स्थापित किया है । मत्स्य विभाग ने विकास के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु के रूप में पूर्वोत्तर क्षेत्र को प्राथमिकता दी है। इसकी पहलों में आधुनिक जलीय कृषि पार्क, हैचरी और मछली प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करना शामिल है, जबकि बायोफ्लोक सिस्टम और रीसर्क्युलेटरी जलीय कृषि प्रणाली (आरएएस) जैसी नवीन तकनीकों को बढ़ावा दिया जा रहा है । इन प्रयासों का उद्देश्य उत्पादकता में वृद्धि करना, मूल्य श्रृंखलाओं को मजबूत करना और मछली उत्पादक किसानों के लिए बाजार पहुंच को बढ़ावा देना है। इस गति को और आगे बढ़ाने के लिए, आज 50 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ 50 प्रभावशाली परियोजनाओं का उद्घाटन / शिलान्यास किया गया,जिसमें 38.63 करोड़ रुपये काकेंद्रीय हिस्सा शामिल है। इसका उद्देश्य पूर्वोत्तर क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से 4,530 रोजगार के अवसर पैदा करना है

क्र.सं. परियोजना इकाइयां
1 हैचरी की स्थापना 12
2 बर्फ संयंत्र/शीत भंडारण 2
3 जलाशय का एकीकृत विकास 1
4 मनोरंजक मत्स्य पालन को बढ़ावा 1
5 मध्यम स्तर की सजावटी मछली पालन इकाई की स्थापना 4
6 छोटे आरएएस की स्थापना 12
7 मछलीघर और सजावटी मछली सहित मछली कियोस्क का निर्माण 10
8 बायोफ्लोक 2
9 फीड संयंत्र 1
10 मिनी मछली फीड मिल 1
11 प्रजनन इकाई की स्थापना 3
12 एकीकृत एक्वापार्क 1
    50

मत्स्य पालन और जलीय कृषि क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो लगभग 3 करोड़ मछुआरों और मछली किसानों को आजीविका प्रदान करता है, जबकि मूल्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण रोजगार के अवसर पैदा करता है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक है, जो वैश्विक उत्पादन में 8 प्रतिशत का योगदान देता है, जलीय कृषि उत्पादन में दूसरे स्थान पर है, झींगा उत्पादन और निर्यात में अग्रणी है, और कैप्चर फिशरीज में तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। 2015 से, भारत सरकार ने इस क्षेत्र में सतत वृद्धि और विकास को बढ़ावा देने के लिए नीली क्रांति योजना, मत्स्य पालन और जलीय कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर विकास कोष (एफआईडीएफ), प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई), और इसकी उप-योजना, प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई) जैसी प्रमुख पहलों के माध्यम से38,572 करोड़रुपये की प्रतिबद्धता जताई है।

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