Delhi Election Results : दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों पर वोटों की गिनती जारी है। शुरुआती रुझानों के अनुसार, बीजेपी बहुमत से अधिक सीटें हासिल करती हुई नजर आ रही है।
Delhi Election Results : दिल्ली विधानसभा की सभी 70 सीटों पर मतगणना जारी है, और कई सीटों के नतीजे सामने आ चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट से चुनाव हार गए हैं। बीजेपी उम्मीदवार प्रवेश वर्मा ने उन्हें 3,182 वोटों से हराया। अब सवाल उठता है कि आम आदमी पार्टी (AAP) को इस चुनाव में हार का सामना क्यों करना पड़ा?
2013 में अन्ना हजारे के आंदोलन से राजनीति में कदम रखने वाले अरविंद केजरीवाल को पहली बार चुनावी शिकस्त मिली है। उनकी मुफ्त बिजली, पानी और बस यात्रा जैसी योजनाएं भी जनता को लुभाने में असफल रहीं। पार्टी के कई दिग्गज नेता भी हार गए हैं। सिर्फ पॉश इलाकों में ही नहीं, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी AAP को करारा झटका लगा है। पिछले चुनावों की तुलना में पार्टी का जनाधार काफी कम हो गया है।
पूरे चुनाव के दौरान केजरीवाल ने अपने ‘दिल्ली मॉडल’ को प्रमुखता से रखा, लेकिन बीजेपी ने बुनियादी सुविधाओं से जुड़े मुद्दों को लगातार उठाया। राजधानी के कई इलाकों—बुराड़ी, संगम विहार, उत्तम नगर और पटपड़गंज में बीजेपी ने टूटी सड़कों और जलभराव की समस्याओं को जोर-शोर से उठाया। पार्टी ने जनता को याद दिलाया कि जल बोर्ड द्वारा सड़कों को खोदा गया, लेकिन उनकी मरम्मत नहीं कराई गई। कई इलाकों में तो पिछले 10 वर्षों में सड़कों का निर्माण ही नहीं हुआ। इन बुनियादी मुद्दों ने AAP के लिए चुनावी नुकसान का काम किया।
गर्मी के मौसम में पानी की कमी और कई इलाकों में टैंकर माफिया की सक्रियता भी एक अहम मुद्दा बना। बीजेपी ने आरोप लगाया कि मुफ्त बिजली और पानी की योजनाओं के जरिए जनता को गुमराह किया जा रहा है। पार्टी ने पानी की किल्लत को चुनावी मुद्दा बनाकर लोगों के बीच जोर-शोर से उठाया। नतीजतन, यह मसला भी आम आदमी पार्टी के खिलाफ गया और चुनावी नुकसान का कारण बना।
बीजेपी ने ओखला और मुस्तफाबाद जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर भी बढ़त बनाए रखी। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के मैदान में उतरने से वोटों का बंटवारा हुआ, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला। ओवैसी की पार्टी को मिले वोट आम आदमी पार्टी के नुकसान का कारण बने। इसके अलावा, मुस्लिम समुदाय में केजरीवाल को लेकर असंतोष भी देखने को मिला। कुछ लोगों का मानना था कि दंगों के दौरान स्थानीय लोगों को उनका समर्थन नहीं मिला, जबकि कोरोनाकाल में भी उनके साथ भेदभाव हुआ। नतीजतन, मुस्लिम मतदाताओं की नाराजगी आम आदमी पार्टी के खिलाफ गई और चुनावी हार का एक बड़ा कारण बनी।