Krishnapingala sankashti chaturthi: चतुर्थी तिथि भगवान श्रीगणेश की पूजा करने के लिए महत्वपूर्ण है। कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी की व्रतकथा-
Krishnapingala sankashti chaturthi: चतुर्थी श्री गणेश को समर्पित है। आज मंगलवार, 25 जून 2024, आषाढ़ मास की पहली चतुर्थी है। कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी इसका नाम है। मंगलवार और चतुर्थी तिथि मिलकर अंगारक चतुर्थी बनती है। संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान श्रीगणेश को विशेष रूप से पूजा जाता है। शाम की पूजा के दौरान व्रतकथा सुनाई या पढ़ी जाती है। आप भी अंगारकी चतुर्थी की कहानी पढ़ें-
भारद्वाज महर्षि की सलाह पर पार्वती ने सात वर्षों तक सूर्य देव के पुत्र सवन को पालन-पोषण किया था। कुछ समय बाद वह लड़के को महर्षि के पास लेकर पहुंची और उसे बताया कि वह उनका पुत्र था। यह सुनकर महर्षि खुश हो गए और वेद और अन्य शास्त्रों का ज्ञान लड़के को दिया। यही नहीं, उन्होंने लड़के को गणपति मंत्र की दीक्षा दी और उसे गणपति देवता की उपासना करने को कहा।
लड़का गंगा किनारे जाकर भगवान गणेश का ध्यान करने बैठ गया और करीब एक हजार वर्षों तक सिर्फ पानी और भोजन के लिए मंत्र पढ़ता रहा। माघ कृष्ण चतुर्थी को चंद्रमा उगते ही भगवान गणेश ने अपने आठ हाथ वाले रूप में एक लड़के को देखा, जो कई अस्त्रों से सजा हुआ था और हजारों सूर्यों से भी चमकदार था। तब गणेशजी ने उससे वरदान मांगा। सवन ने गणेशजी से वरदान मांगा की उनके पिता, उनकी मां पार्वतीमालिनी, उनका जीवन, दृष्टि, वाणी और जन्म सफल हों।
उसने यह भी मांग की कि वे स्वर्ग में देवताओं के साथ अमृत पी सकें और उनका नाम मंगल रखें, क्योंकि मंगल सभी तीन जगहों में शुभ है। भगवान गणेश ने उसे सिर्फ उसके कहे अनुसार वरदान दिया। साथ ही उसे अंगारक नाम दिया और कहा कि इस चतुर्थी को अंगारकी चतुर्थी कहा जाएगा और इस दिन व्रत रखने वाले को एक वर्ष तक सफलता मिलेगी।
बाद में, मंगल नाम से प्रसिद्ध सवन ने भगवान गणेश की दस हाथ वाली एक मूर्ति बनाई और उसे मंगलमूर्ति नाम दिया। मान्यता है कि इस रूप में भगवान गणेश की पूजा करने से सभी मनोकामना पूरी होती है। सवन ने अंगारकी चतुर्थी का व्रत भी रखा, इसके परिणामस्वरूप स्वर्ग और अनंत आनंद प्राप्त किया।
एक अन्य कथा है- पुराने समय में एक गांव में दो भाई बहन रहते थे। बहन हमेशा अपने भाई का चेहरा देखकर खाना खाती थी। वह हर दिन सुबह उठकर सारा काम करके अपने भाई का मुंह देखने के लिए उसके घर जाती थी। रास्ते में एक दिन गणेशजी की मूर्ति पीपल के नीचे रखी थी। उसने भगवान के सामने हाथ जोड़कर कहा कि सबको मेरी तरह सुहाग और पीहर दीजिए। इसके बाद वह आगे बढ़ी।
उसके पैरों में जंगल की झाड़ियों के कांटे चुभते रहते थे। जब वह एक दिन अपने भाई के घर पहुंची और बैठ गई, तो उसकी भाभी ने पूछा कि उसके पैरों में क्या हुआ है। यह सुनकर उसने भाभी को कहा कि रास्ते में जंगल के झाड़ियों से गिरे हुए कांटे पांव में चुभ गए हैं। भाभी ने अपने पति से कहा कि रास्ता साफ करवा दीजिए क्योंकि उसकी बहन के पांव में बहुत सारे कांटा चुभ गए हैं। बाद में भाई ने कुल्हाड़ी लेकर सभी झाड़ियों को काटकर सड़क को साफ कर दिया। गणेश जी की जगह भी वहाँ से हट गई। यह देखकर भगवान गुस्सा हो गया और उसके भाई के प्राण ले लिए।
जब उसके भाई को अंतिम संस्कार के लिए ले जा रहे थे, उसकी भाभी रोते हुए लोगों से कहा कि थोड़ी देर रुको, उनकी बहन आने वाली है। वह अपने भाई का मुंह देखे बिना नहीं रह सकती है। यह उसका नियम है। तब लोगों ने कहा कि कल देखेगी, लेकिन आज नहीं। बहन हर दिन जंगल में अपने भाई को देखने निकली। बाद में जंगल में उसने सारी राह को साफ देखा। जब वह आगे बढ़ी तो उसने देखा कि भगवान गणेश को भी वहां से हटा दिया गया हैं। तब उसने भाई के पास जाने से पहले गणेशजी को एक सुंदर जगह पर रखकर फिर से जगह दी और हाथ जोड़कर कहा, भगवान, सबको मेरे जैसा सुहाग और पीहर देना. फिर निकल गई।
तब भगवान श्रीगणेश ने उसे उसे आवाज लगाई और कहा कि बेटी इस खेजड़ी की सात पत्तियां लेकर जा, उसे कच्चे दूध में घोलकर भाई के ऊपर छींटें मार देगी, तो वह फिर से जीवित हो जाएगा। बहन ने यह सुनकर पीछे देखा तो वहाँ कोई नहीं था। फिर वह उसने सोचा कि ठीक है, जैसा सुना वैसा कर लेती हूं। वह अपने भाई के घर गई, सात खेजड़ी की पत्तियां लेकर। उसने देखा कि वहां बहुत से लोग बैठे हुए थे, भाभी रोती हुई बैठी थी और अपने भाई की लाश पकड़ी हुई थी। तब उसने अपने भाई पर उन पत्तियों को बताए हुए नियम के अनुसार इस्तेमाल किया। उसका भाई फिर जीवित हुआ।