Punjab News: पंजाब में बीजेपी पर किसानों का गुस्सा फूटा, प्रत्याशियों की एंट्री बंद; कठिन हो गया प्रचार

Punjab News: पंजाब में बीजेपी पर किसानों का गुस्सा फूटा, प्रत्याशियों की एंट्री बंद; कठिन हो गया प्रचार

Punjab News: पंजाब में बीजेपी का व्यापक विरोध है। दूसरी तरफ, बहुत से किसान भी शंभू बॉर्टर पर डटे हैं। किसान नेताओं का कहना है कि बीजेपी को छोड़कर किसी दूसरे को वोट दें।

24 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंजाब में चुनाव प्रचार का दौरा किया था। जालंधर और गुरदासपुर में उनकी रैलियां हुईं। वहीं किसान मोदी सरकार का विरोध करते रहे, भारी पाबंदियों के बावजूद। पुतले फूंके गए और नारा लगाया गया। मोदी सरकार पर पंजाब के किसानों का गुस्सा शांत नहीं हुआ है। पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर कृषक अभी भी रहते हैं। यहां किसानों ने अस्थायी गांव बनाए हैं। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ी, किसानों के टेंट में भी कूलर दिखाई दिए। लेकिन इस भयंकर गर्मी में भी वे थक नहीं रहे थे। फरवरी में किसान दिल्ली की ओर चले गए, लेकिन शंभू बॉर्डर पर ही उन्हें रोका गया।

1 जून को होने वाले आखिरी चरण के चुनाव में पंजाब की 13 लोकसभा सीटों पर मतदान करना होगा। उससे पहले किसानों ने बीजेपी का विरोध बढ़ा दिया है। किसानों ने अपील की है कि वे बीजेपी को छोड़कर किसी अन्य पार्टी को वोट दें। भारतीय किसान यूनियन (बहरामके) के अध्यक्ष बलवंत सिंह ने कहा कि किसान मोर्चा अपील करता है कि अगर बीजेपी का कोई प्रत्याशी आपगे गांव में प्रचार करने आए तो उसका विरोध करो और उसे बाहर का रास्ता दिखाओ।

बीजेपी का विरोध करने के बाद भी किसानों ने अपनी रुचि की पार्टी बताई है। उनका दावा है कि किसानों को कोई पार्टी नहीं मदद की है। कांग्रेस को कभी वोट दिया गया, तो अकालियों को कभी। सिंह ने कहा कि किसानों के लिए किसी पार्टी का कोई अजेंडा नहीं है। भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) के सुखविंदर कौर ने कहा, हरियाणा पुलिस ने झूठे मामलों में गिरफ्तार किए गए युवाओं को तुरंत रिहा किया जाए। हम भी सरकार से सवाल पूछ सकते हैं।

बीजेपी प्रत्याशियों को करना पड़ रहा विरोध का सामना

बीजेपी के उम्मीदवारों को प्रचार में भी विरोध मिल रहा है। किसानों ने काले झंडे दिखाकर उनके खिलाफ नारेबाजी की है। राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल पिछले दिनों बठिंडा के मेहराज गांव में चुनाव प्रचार करने पहुंचे थे। किसान भी उनका विरोध करते थे। इसके बाद उन्होंने आगे का कार्यक्रम छोड़ दिया। वहीं दिख गांव में उनका प्रवेश ही वर्जित था। बहुत से किसान नेता अपने गांवों में वापस आ गए हैं और ‘जागरूकता अभियान’ चला रहे हैं।

 

 

 

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