Haryana News: हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों के अलावा करनाल विधानसभा सीट पर भी मतदान हुआ है। अब सभी को इन सीटों के परिणामों पर नजर है क्योंकि मौजूदा नायब सैनी सरकार का भविष्य करनाल विधानसभा उपचुनाव से तय होगा। ये सीट पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के इस्तीफे से खाली है।
लोकसभा चुनाव के साथ-साथ करनाल विधानसभा सीट के उम्मीदवारों की किस्मत भी ईवीएम पर निर्भर है। चार जून को मतगणना के बाद केंद्र में नई सरकार की स्थिति स्पष्ट होगी, वहीं करनाल विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव के परिणामों से राज्य सरकार का भविष्य भी तय होगा।
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, जिन्हें कुर्सी पर बने रहने के लिए हर संभव उपाय करना होगा, इस सीट पर उपचुनाव में मैदान में हैं, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस्तीफा दे दिया है। भाजपा की जीत से राष्ट्रपति शासन की मांग करने वाली कांग्रेस और जजपा भी कमजोर हो जाएंगी। बिजली मंत्री रणजीत चौटाला के इस्तीफे और निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद के निधन से खाली हुई बादशाहपुर सीट पर उपचुनाव नहीं होगा।
सीएम पद से हटने के बाद मनोहर लाल ने दिया विधानसभा सीट से इस्तीफा
विधानसभा में कोई सीट खाली होने पर छह महीने के अंदर उपचुनाव का प्रविधान है। अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने से दोनों सीटों पर भी चुनाव होंगे। 13 मार्च को मनोहर लाल ने मुख्यमंत्री पद से हटने के अगले ही दिन करनाल विधानसभा सीट से त्यागपत्र दे दिया, जिससे हरियाणा विधानसभा की 90 सदस्यीय संख्या घटकर 89 हो गई।
विधानसभा अध्यक्ष डॉ. ज्ञानचंद गुप्ता ने उसी दिन से इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया। इसके डेढ़ माह बाद 30 अप्रैल को स्पीकर ने सिरसा जिले की रानियां सीट से निर्दलीय विधायक रहे रणजीत चौटाला, जो आज भी नायब सैनी सरकार में बिजली एवं जेल मंत्री हैं, का इस्तीफा 24 मार्च से ही स्वीकार कर लिया। इससे सदन की एक और संख्या घटकर 88 हो गई।
ऐसे बिगड़ा राजनैतिक समीकरण
वहीं, बीते रविवार को बादशाहपुर के निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद के निधन के बाद विधानसभा सदस्यों की संख्या घटकर 87 रह गई। हालांकि चार जून को करनाल विधानसभा क्षेत्र के उपनतीजों के बाद विधायकों की संख्या फिर बढ़कर 88 हो जाएगी। ढाई माह पूर्व 12 मार्च को जब मनोहर लाल को हटाकर नायब सैनी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया, तब उस सरकार को भाजपा के तत्कालीन 41 विधायकों (स्पीकर को मिलाकर), छह निर्दलीय और एक हलोपा (हरियाणा लोकहित पार्टी) के विधायक गोपाल कांडा अर्थात कुल 48 विधायकों का समर्थन हासिल था।
राज्यपाल शक्ति परीक्षण के लिए बुला सकते विधानसभा सत्र
सर्वप्रथम मनोहर लाल और फिर रणजीत सिंह के त्यागपत्र के बाद सरकार समर्थक विधायकों की संख्या 46 रह गई। इसके बाद तीन निर्दलीय विधायकों नीलोखेड़ी के धर्म पाल गोंदर, पुंडरी के रणधीर सिंह गोलन और दादरी से विधायक सोमबीर सांगवान द्वारा समर्थन वापस लेने और राकेश दौलताबाद के निधन के बाद सरकार समर्थक विधायक 42 रह गए हैं। सरकार के अल्पमत में होने का दावा करते हुए कांग्रेस और जजपा प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कराने की मांग कर रही हैं। उपचुनाव के बाद राज्यपाल शक्ति परीक्षण के लिए विधानसभा का सत्र भी बुला सकते हैं।