Haryana: हरियाणा विधानसभा में भाजपा का बहुमत है। क्रॉस वोटिंग भी हो सकती है। भाजपा ऐसी स्थिति में हुड्डा की यह सीट पा सकती है। कांग्रेस इससे मुश्किल में आ गई है।
कांग्रेस नेता दीपेंदर हुड्डा ने हरियाणा की रोहतक लोकसभा सीट से जीत हासिल की है। अब उन्हें राज्यसभा से इस्तीफा देना होगा, जहां दोबारा चुनाव होगा। कांग्रेस को लोकसभा में एक सीट मिली है, लेकिन राज्यसभा में एक सीट खो देने का भी खतरा है। इसका कारण हरियाणा विधानसभा के अधिकांश सदस्य भाजपा के पक्ष में हैं। क्रॉस वोटिंग भी हो सकती है। भाजपा ऐसी स्थिति में हुड्डा की यह सीट पा सकती है। दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी से विधायक और कुछ निर्दलीय क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं। ऐसा हुआ तो कांग्रेस को फिर से जीत मिलना असम्भव होगा।
Haryana: 2020 में दीपेंदर हुड्डा ने राज्यसभा में पदार्पण किया और 2026 तक के लिए था। वर्तमान हालात में भाजपा मजबूत दिखती है। उसके पक्ष में विधायकों के अलावा जेजेपी का एक गुट, विधायक वाली पार्टियां और कुछ निर्दलीय हैं। नियम कहता है कि लोकसभा के लिए चुना गया राज्यसभा का सांसद अपनी सीट छोड़ देना चाहिए। रोहतक में जीत के बाद दीपेंदर हुड्डा की राज्यसभा सीट खाली हो गई है। अब राज्यसभा सीट पर उपचुनाव के लिए चुनाव आयोग को सूचना देना होगा। नियम के अनुसार चुनाव छह महीने के भीतर होना चाहिए।
विधानसभा चुनाव से पहले इस सीट पर चुनाव हो सकता है। अब कांग्रेस विधायक वरुण चौधरी अंबाला लोकसभा सीट से चुने गए हैं। इसलिए विधानसभा की संख्या सिर्फ 87 है। यहाँ बहुमत का सिर्फ आंकड़ा 44 है। वहीं, जेजेपी के कुल दस विधायक हैं, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में मतभेद हैं। दो विधायकों ने खुलकर भाजपा का साथ दिया है। उसके एक विधायक देवेंदर सिंह बबली तो कांग्रेस का लोकसभा चुनाव में समर्थन कर चुके हैं। इसके अलावा एक अन्य विधायक रामकुमार गौतम भी जेजेपी लीडरशिप से नाराज हैं। राज्य में कांग्रेस के 29 विधायक हैं और उसे तीन का समर्थन हासिल है। इस तरह विपक्ष की संख्या राज्य में 32 है।
जेजेपी के कुछ और विधायक कर सकते हैं क्रॉस वोटिंग
वहीं भाजपा के 41 विधायक हैं और गोपाल कांडा एवं नयनपाल रावत का उसे समर्थन हासिल है। इनोलो के इकलौते विधायक अभय चौटाला और निर्दलीय बलराज कुंडू अब तक भाजपा के खिलाफ ही रहे हैं। लेकिन जेजेपी के कुछ और विधायक क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं। बता दें कि राज्यसभा में विधायक किसी भी कैंडिडेट को वोट कर सकते हैं और उन पर कोई दल ऐक्शन भी नहीं ले सकता। ऐसे ही एक मामले में फैसला सुनाते हुए 22 अगस्त, 2006 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विधायक यदि राज्यसभा में दूसरे दल के नेता को वोट करता है तो उसकी मेंबरशिप खारिज नहीं हो सकती।